चाहता है हर कोई

चाहता है हर कोई खुद से मिलना
पर ये माया की भुलभुलैया उसे मिलने नहीं देती ॥

चाहता है हर कोई खुलकर हँसना
पर ये मन की व्यर्थ व्यथा उसे हँसनें नहीं देती ॥

चाहता है हर कोई खुशी से खिलना
पर ये मन की दुखभरी कथा उसे खिलनें नहीं देती ॥

चाहता है हर कोई जिंदा महसुस करना
पर ये अज्ञान की बेहोशी, उसे ये एहसास होनें नहीं देती ॥

चाहता है हर कोई प्रेममयी होंना
पर ये ईर्षा की नौटंकी, प्रेम में बेहनें नहीं देती ॥

अब चाहत यहीं है की, हो जाए अंतिम गुरूकृपा
मिलें फिर जागृती , जो ईश्वर तत्व से दुर हटने नहीं देती ॥

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