प्रेममयी

यादें चाहे अच्छी हों या बुरी, वे मूलतः एक बंधन ही होती हैं… इस बंधन से मुक्त होना भी उतना ही महत्वपूर्ण है…

जब हम यादों को लिखते हैं, तब समझ में आता है कि गलती किसी की भी नहीं होती, सब कुछ प्रकृति ही कर रही होती है…

जब हम यह सीखते हैं और सबको माफ करते जाते हैं, तो इंसान बंधनों से मुक्त होकर — एक ताजा, नया, और नुतन बनता जाता है, और बिल्कुल एक छोटे बच्चे की तरह प्रेममय होता जाता है…

जब इंसान भीतर से प्रेममय बनता है,

तो फिर उसमें कोई मोह नहीं रह जाता…

प्रेममय होकर प्रेम देना अलग बात है,

और प्रेम माँगते फिरना एकदम से अलग…

में एक निरागस प्रेममयी बनना चाहता हूं

@ganeshsabale.com

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