तुम आओ तो…

इधर दिलों में कुछ कड़वाहट सी है,
आओ तो, साथ थोड़ी मिठास भी ले आना।

इधर मन में उठते हैं बेमौसम तूफ़ान,
आओ तो, कुछ सुकून की बूँदें भी ले आना।

इधर हम नाराज़ हैं, और दूर जा रहे हैं,
पर तुम आओ तो , तो सिर्फ हमे रुलाने मत आना।
ना थामने, ना कुछ समझने  आना।

और कभी-कभी यूँ भी लगता है…

कि अगर आना है — तो ऐसे आना…
जैसे कभी हम सुकून से मिले ही न हो।
जैसे वो लम्हे जो हमारे थे, कुछ भी खास न हो।

जैसे कभी नाज़ न था एक-दूजे के किरदार पर,
ना कोई वादे, ना कसमें, ना रिश्तों के नाम।

जैसे कोई बंधन ही न रहा हो,
बस… एक मुक्ति का एहसास हो — तुझमें, मुझमें।
बस… आज़ादी हो।

इतना ही काफ़ी नहीं क्या?…

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